CRSU JIND: चौधरी रणबीर सिंह विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय एकता शिविर के सात दिवसीय कैंप में स्वयंसेवकों ने किया योगाभ्यास

CRSU JIND: जींद स्थित चौधरी रणबीर सिंह विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय एकता शिविर के सात दिवसीय कैंप में वीरवार को तीसरे दिन सुबह स्वयंसेवकों ने योगाभ्यास किया। इसके पश्चात स्वयंसेवकों में जागरूकता पैदा व समाज के प्रति उनके कर्तव्यों को बताने के लिए वक्ताओं ने अपने विचार सांझा किये। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के तौर पर फार्मर वाइस चांसलर, गुरुग्राम यूनिवर्सिटी डॉ. मार्कण्डेय आहूजा रहे। उन्होंने महापुरुषों के इतिहास की जानकारी को सांझा करते हुए कहा कि युवाओं को अपने देश से प्रेम और सम्मान करना चाहिए। उन्हें हर प्रकार की भेदभाव और संकीर्णता से ऊपर उठकर राष्ट्रीय एकता के लिए कार्य करना चाहिए। युवाओं को अपनी संस्कृति, भाषा और परंपराओं के महत्व को समझना, उन्हें संजोए रखना चाहिए। एक स्वस्थ शरीर और मन से ही युवा देश को आगे बढ़ाने में समर्थ होते हैं। उन्हें स्वस्थ जीवनशैली अपनानी चाहिए और नशे व अन्य बुरी आदतों से दूर रहना चाहिए।
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के तौर पर डॉ. प्रीतम सिंह कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय भी रहे। उन्होंने कहा कि अपनी आध्यात्मिक शक्ति, गौरवपूर्ण संस्कृति-संस्कारों से ओतप्रोत अद्भुत सामर्थ्य, वैश्विक शांति और सौहार्द के लिए वसुधैव कुटुम्बकम के भारतीय दर्शन और मानव कल्याण की प्रेरणा देने वाले सनातन धर्म के कारण ही भारत विश्वगुरु की प्रतिष्ठा को प्राप्त करें। उन्होंने कहा कि गुरु गोविन्द जी शान्ति, क्षमा, सहनशीलता की मूर्ति थे। कश्मीरी पंडितों का जबरन धर्म परिवर्तन करके मुस्लमान बनाये जाने के विरुद्ध फरियाद लेकर गुरु तेग बहादुर जी के दरबार में आये और कहा कि हमारे सामने ये शर्त रखी गयी है कि है कोई ऐसा महापुरुष जो इस्लाम स्वीकार नहीं कर अपना बलिदान दे सके तो आप सब का भी धर्म परिवर्तन नहीं किया जाएगा। उस समय गुरु गोबिन्द सिंह जी नौ साल के थे। उन्होंने पिता गुरु तेग बहादुर जी से कहा कि आपसे बड़ा महापुरुष और कौन हो सकता है। कश्मीरी पंडितों की फरियाद सुन उन्हें जबरन धर्म परिवर्तन से बचाने के लिए स्वयं इस्लाम न स्वीकारने के कारण 11 नवंबर 1675 को औरंगजेब दिल्ली के चांदनी चौक में सार्वजनिक रूप से उनके पिता गुरु तेग बहादुर का सिर कटवा दिया। इसके पश्चात वैशाखी के दिन 29 मार्च 1676 को गोविंद सिंह सिखों के दसवें गुरु घोषित हुए। साथ ही साथ उन्होंने सभी से फोन से दूर रहने की भी सलाह दी।
नेतृत्व का मतलब है, लक्ष्य तय करना
डॉ. रीता कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी ने बताया कि लीडरशिप यानी नेतृत्व का मतलब है, लक्ष्य तय करना और उन्हें हासिल करना, प्रतिस्पर्धा से निपटना और समस्याओं का समाधान करना, कॉर्पेरेट संस्कृति में, नेतृत्व का मतलब कंपनी के प्रबंधन द्वारा तय स्वर से भी है।
लक्ष्य प्रबंधन संगठनों को संगठन के भीतर प्रत्येक प्रबंधक, विभाग और व्यक्ति को रणनीतियों और व्यावसायिक उद्देश्यों को प्रभावी ढंग से संप्रेषित करने का एक तरीका प्रदान करता है। कुंजी उचित उपकरणों और संचार के माध्यम से रणनीतियों, उद्देश्यों और गतिविधियों के बीच एक सुसंगत सूत्र स्थापित करना है। सच्चे टीम लीडर हरदम नया सीखने के लिए तत्पर रहते हैं। उनकी कोशिश अपने साथ-साथ टीम मेंबर्स की स्किल में इजाफे और कार्यशैली में सुधार की होती है। इसलिए हर नई तकनीक को गले लगाने के अलावा खुद को अपडेट और अपग्रेड करने में कोताही न बरतें। आत्मविश्वासी और अपने काम में दक्ष बनें। चुनौतियों से घबराएं नहीं। सकारात्मक सोच काम में रचनात्मकता से तरक्की की राह बनेगी। कठिन से कठिन हालात में भी टीम को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते रहें।
डॉ. ऋषि गोयल कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी से स्पोकपर्सन ने बताया कि आत्मविश्वास एक मानसिक एवं आध्यात्मिक शक्ति है। आत्मविश्वास से ही विचारों की स्वाधीनता प्राप्त होती है और इसके कारण ही महान कार्यों के संपादन में सरलता और सफलता मिलती है। इसी के द्वारा आत्मरक्षा होती है, जो व्यक्ति आत्मविश्वास से ओतप्रोत है, उसे अपने भविष्य के प्रति किसी प्रकार की चिंता नहीं रहती। उसे कोई चिंता नहीं सताती। दूसरे व्यक्ति जिन संदेहों और शंकाओं से दबे रहते हैं, वह उनसे सदैव मुक्त रहता है। यह प्राणी की आंतरिक भावना है। इसके बिना जीवन में सफल होना अनिश्चित है। विश्वविद्यालय कुलसचिव प्रो. लवलीन मोहन ने सभी स्वयंसेवकों को अपना आशीर्वाद दिया। विश्वविद्यालय एनएसएस संयोजक डॉ. जितेन्द्र कुमार ने सभी वक्ताओं का शिविर में पहुंचने पर धन्यवाद किया।
शिक्षा के तनाव को हावी न होने दें विद्यार्थी : ज्योति आर्या
जींद के पिल्लूखेड़ा स्थित माता चानन देवी आर्य कन्या गुरुकुल में छात्राओं ने "बाल दिवस" को एक नए ढंग से मनाया। इसमें बच्चों को "जीवन जीने की कला" विषय के बारे में जानकारी दी गई।
गुरुकुल की प्राचार्य ज्योति आर्या ने छात्राओं को बताया कि हम स्कूल, गुरुकुल या कॉलेज में अनेक विषयों को पढ़ते हैं परंतु कभी भी हमें जीवन जीने की कला के विषय में नहीं पढ़ाया जाता, जो की बहुत जरूरी है। ज्योति आर्या ने कहा कि शिक्षा जीवन का एक भाग है न कि जीवन। इसलिए शिक्षा के तनाव को अपने ऊपर हावी न होनें दें। मनुष्य जीवन में हमें अनेक परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है यदि हमें जीवन जीने की कला आती होगी तो हम हर परिस्थिति का सामना अच्छे से कर पाएंगे। आज के इस दौर में हर व्यक्ति मानसिक दबाव से परेशान है, एक छोटे बच्चे से लेकर एक वयस्क को कभी परीक्षाओं का तनाव, कभी करियर का तनाव तो कभी घर-खर्च चलाने का तनाव। इन सभी परिस्थितियों से हमें गुजरना पड़ता है। यदि हमें पढ़ाए जाने वाले विषयों में एक विषय जीवन को किस ढंग से जिया जाए यह भी रहे तो हम अपने जीवन काल को सुख से बिता सकेंगे। ज्योति आर्या ने कहा कि अभी कुछ माह बाद परीक्षा आने वाली हैं इसलिए परीक्षा का तनाव न लेकर अच्छे से परीक्षा की तैयारी करें।